Wednesday, July 29, 2009

तुम्हारी आवाज़ में नूरजहाँ, सुरैया और शमशाद बेगम की आवाज़ की झलक मिलती है

---** श्री युनुस खान



ये उन दिनों की बात है जब टी. प्रकाशराव की फिल्म 'सूरज' बन रही थी। या कहें की इससे कुछ पहले की बात है। शोमैन राजकपूर जब ईरान की राजधानी तेहरान गए, तो वहाँ फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर श्रीचंद आहूजा ने उनके सम्मान में एक पार्टी का आयोजन किया. इसमें एक युवा भारतीय गायिका ने कुछ पुराने गीत सुनाये और अपनी आवाज़ का रंग जमा दिया. राजकपूर ने इस गायिका से कहा की तुम्हारी आवाज में अजीब-सी खनक है। तुम यहाँ क्या कर रही हो। तुमको तो मुंबई आना चाहिए।

राजकपूर साहब के कहने पर आखिरकार यह युवा गायिका मुंबई आ गयी और आर.के. स्टूडियो में ही ऑडिशन दिया. आरके बैनर में सभी को यह आवाज़ पसंद आयी और राजकपूर ने इस युवा गायिका से कहा की वह संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन से से जाकर मिल ले। शंकर-जयकिशन ने जब इस आवाज़ को सुना, तो उन्हें भी यह बहुत भा गयी। उस समय चल रही आवाजों से एकदम अलग आवाज़ थी वो। फ़िल्म 'सूरज' के गाने तैयार हो रहे थे, इसलिए इस फ़िल्म का शैलेन्द्र का लिखा एक गीत ख़ास तौर पर इस आवाज़ को ध्यान में रखकर तैयार किया गया । यह गीत था -- 'तितली उडी, उड़ जो चली' । आप पहचान गए होंगे की वह गायिका थीं शारदा। इस हफ्ते जब मेरी शारदा जी से मुलाक़ात हुई, तो मैं यह देख कर दंग रह गया की उम्र के इस मुकाम पर पहुँचने के बाद भी उनकी आवाज़ की खनक और सुर कायम हैं। शारदा ने बहुत ज़्यादा गीत नहीं गाये हैं, लेकिन थोड़े ही समय में फ़िल्म-उद्योग में अपने गिने-चुने गीतों के ज़रिये जो मुकाम छुआ, वो बहुत कम लोगों को हासिल होता है। शारदा का पूरा नाम है शारदा राजन अय्यंगार । तमिलनाडु के तंजौर की रहने वाली शारदा बताती हैं की बचपन से ही गानों का उनको इतना शौक था की मलिका-ऐ-तरन्नुम नूरजहाँ के गाने पड़ोस की चाय की गुमठी पर लगे रेडियो पर भी बजते, तो वे उन्हें सुनने के लिए अपने घर की छत पर चढ़ जाती थीं । उस दौर में रफी साहब और नूरजहाँ का गया फ़िल्म 'जुगनू' का गीत उन्हें बहुत पसंद था--'यहाँ बदला वफ़ा का बेवफाई के सिवा क्या है। शारदा ने यह गीत गुनगुनाकर सुनाया, तो यूँ लगा, जैसे कमरा महक उठा हो। बहरहाल, तितली उडी....' शारदा के कैरियर का पहला गीत था। शंकर-जयकिशन का तकरीबन डेढ़ सौ साजिंदों का ऑर्केस्ट्रा, ख़ुद फ़िल्म के नायक राजेंद्र कुमार और कई पत्रकारों की मौजूदगी में जब शारदा ने इस गाने की रिकॉर्डिंग पूरी की, तो उस जमाने में फ़िल्म-डिस्ट्रीब्यूटर ताराचंद बड़जात्या ने उन्हें फ़ौरन सौ रुपये आशीर्वाद के रूप में दिए थे और कहा था की तुम्हारी आवाज़ में नूरजहाँ, सुरैया और शमशाद बेगम की आवाज़ की झलक मिलती है। इसके कुछ ही दिनों बाद शारदा को अपने कुछ बेहद लोकप्रिय गीत गाने का मौका मिला। ये गाने उन्होंने मुकेश के साथ गाये। शारदा बताती हैं की उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था की वे फ़िल्म-जगत में बतौर गायिका आएँगी और इतने महान गायकों के साथ 'माइक-शेयर' करेंगी। फ़िल्म 'अराउंड दी वर्ल्ड' के निर्माता निर्देशक थे पाछी और यह शारदा की बतौर गायिका दूसरी फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में मुकेश के साथ उन्होंने 'चले जाना ज़रा ठहरो' और 'दुनिया की सैर कर लो' जैसे गीत गाये थे। फ़िल्म 'सूरज' के बाद 'अराउंड द वर्ल्ड' ने उन्हें ज़बरदस्त शोहरत दी। इस फ़िल्म में शारदा के कुछ और गीत भी थे।

इसी तरह 'जाने भी दे सनम' गीत आप सुनेंगे, तो पाएंगे की इस गाने का चलन एकदम अलग तरह का है। इसमें 'जाने जाने जाने, जाने दे' वाली पंक्तियों को शंकर-जयकिशन ने एकदम अलग ही रंग दिया है। शारदा ने मोहम्मद रफी के साथ अपना पहला गीत राजा नवाथे की फ़िल्म 'गुमनाम' में गाया था। इस गाने के बोल थे 'जाने चमन शोला बदन'। शारदा बताती हैं की रफी साहब के साथ गाते हुए वह काफ़ी नर्वस थीं। बचपन से ही जिनकी आवाज़ की 'फैन' रहीं, उनके साथ गाने का मौका जो मिल रहा था। यह गाने भी बेहद लोकप्रिय हुआ था। बाद में शायद १९६९ में उन्हें फ़िल्म 'शतरंज' के लिए रफी साहब के साथ बड़ा ही अनूठा गीत गाने को मिला। इसमें महमूद भी उनके साथ थे। यह गीत था 'बतकम्मा बतकम्मा इकड़ पोटोरा'। शारदा बताती हैं की रिकॉर्डिंग के दौरान अभिनेता महमूद को उनके ही माइक पर गाना था। शंकर जयकिशन ने महमूद को पूरी छूट दे रखी थी। ज़ाहिर है की महमूद पूरी मस्ती में थे और यह गाना कई बार 'रीटेक' के बाद ही रिकॉर्ड हो सका था। आजकल शारदा युवाओं को 'वाइस कल्चर' सिखाती हैं और दुनिया भर में स्टेज-शो करती हैं। शारदा के बारे में और जानना चाहते हैं, तो उनकी वेब-साईट http://www.titliudi.com/
पर जाइये।
श्री युनुस खान














लेखक विविध भारती में कार्यरत हैं
मैं SHRI SHRIGOPAL SHROTI जी का आभारी हूँ JINHONE मुझे यह CUTTING BHEJI
COURTESY : DAINIK BHASKAR

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